2024-07-05 09:40:03
Mirzapur 3 Review: मजबूरी में शुरू हुई गैंगस्टरबाजी का मजा ले रहे गुड्डू पंडित, मिर्जापुर की गद्दी का मिजाज संभाल पाएंगे या नहीं? गुड्डू के गुबार को, गेम प्लान से मैनेज कर रहीं गोलू का गोल पूरा होगा या नहीं? जौनपुर के जूनियर शुक्ला उर्फ शरद, पूर्वांचल पर पकड़ की ओपन पोजिशन में सिक्का भिड़ाकर पापा का सपना पूरा कर पाएंगे या नहीं?
प्रेम के प्रपंच में भाई को भेंट चढ़ा चुके छोटे त्यागी का अगला टारगेट क्या होगा? मौत के मुहाने से लौट रहे कालीन भैया के लिए अब मिर्जापुर रेड कार्पेट बिछाएगा या कांटे? और सबसे टॉप प्रायोरिटी बात… मुन्ना भैया मृत्यु की शैय्या से लौटेंगे या निपटे हुए ही रहेंगे?
‘मिर्जापुर’ का दूसरा सीजन जनता के लिए ढेर सारे सवाल छोड़कर गया था. और जवाब आ गया है ‘मिर्जापुर 3’ के साथ. मगर हर जवाब की नियति है, एक नए सवाल से टकराना… और अब टक्कर का सवाल है- क्या ‘मिर्जापुर 3’, शो की बाट जोहती जनता की मूड पर फिट है? या फिर ये आउट ऑफ सिलेबस हो गया है?!
‘मिर्जापुर 3’ का मुद्दा
गुड्डू पंडित (अली फजल) पहले बागी बने, फिर गुंडे, फिर गैंगस्टर और अब उनको बनना है बाहुबली. पहले सीजन से ही ये क्लियर हो गया था कि गुड्डू पंडित असल में पावर-पिपासु हैं ही नहीं. ये आदमी इस संसार में केवल अराजकता का एजेंट है. अब जब उसके पास मिर्जापुर की पावर है तो वो करेगा क्या?
‘मिर्जापुर 3’ शुरू होता है गोलू (श्वेता त्रिपाठी) से, जो कालीन भैया उर्फ अखंडानंद त्रिपाठी या उनकी डेड बॉडी मिले बिना सांस नहीं लेगी. कालीन भैया सिर्फ ‘किंग ऑफ मिर्जापुर’ नहीं थे, पूर्वांचल की पावर को जोड़ने वाला एक पावर ग्रिड थे. उनके जाने से अब ये पावर बिखर रही है. गुड्डू भले उनकी कुर्सी पर बैठकर खुद को खलीफा घोषित कर दें, लेकिन पावर का ये नियम है कि वो मिलती नहीं, कमाई जाती है.
और अपने खराब फ्यूज के लिए मशहूर/बदनाम गुड्डू का सबसे बड़ा चैलेंजर है जौनपुर का नया झंडाबरदार शरद शुक्ला, सुपुत्र ऑफ रतिशंकर शुक्ला. जिसे गुड्डू ने एक सांस में क-ख-ग पढ़ते हुए मार दिया था. मगर शरद पढ़ा लिखा चतुर-चालाक-चौकस लड़का है. और सब्र का भरपूर भंडार रखे हुए इस लड़के का दिमाग ए-बी-सी भी नहीं, अल्फा-बीटा-गामा पढ़ता है.
गुड्डू ने तो थोक के भाव दुश्मन कमाए ही हैं, गोलू के हिस्से भी एक दिलजला आया है. भरत त्यागी बनकर जी रहा, उसका जुड़वा छोटा भाई, शत्रुघ्न. गोलू के चक्कर मे पड़कर भाई खो चुका शत्रुघ्न अब आशिकी में केकड़ा बनने जा रहा है (ये रेफरेंस शो देखकर समझ आएगा).
पंडित परिवार के सिर नया दुख आया है. एडवोकेट रमाकांत पंडित (राजेश तैलंग) ने सीजन 2 में गुड्डू को बचाने के लिए एस. एस. पी. मौर्या की हत्या की थी. अब वकील साहब स्वयं जेल में हैं और कैदियों को देखकर उनकी नैतिकता का कांटा डगमगाने लगा है. उनका घर अब उनकी बेटी का प्रेमी रॉबिन (प्रियांशु पैन्युली) के जिम्मे है.
इधर कालीन भैया की पत्नी बीना (रसिका दुग्गल), त्रिपाठी परिवार के आखिरी चिराग को मिर्जापुर की आंधियों से बचाने में जुटी हैं. गुड्डू को उनका फुल सपोर्ट है. और उधर लखनऊ में स्वर्गीय मुन्ना त्रिपाठी की पत्नी, मुख्यमंत्री माधुरी यादव (ईशा तलवार) के सामने भी सर्वाइवल का सवाल बहुत तगड़ा है.
माधुरी को अपने पिता की परंपराओं पर चल रहे उनके पॉलिटिकल साथियों और दुश्मनों से निपटना है. वो प्रदेश को भयमुक्त प्रदेश भी बनाना चाहती है और बाहुबलियों में कानून का भय भी भरना चाहती है. मगर बदले और ईगो के ईंधन से हॉर्सपावर जेनरेट करने वाली इस प्रजाति का इलाज पॉलिटिक्स से होना नामुमकिन ही है. बाहुबली, जगत के संहारकर्ता को अपने हठ से प्रसन्न कर चुके भस्मासुर हैं. बस देखना है कि सतत दुस्साहस, हनक और निष्ठुरता की थाप पर नृत्य करते इन राक्षसों में कौन अपने सिर पर हाथ पहले रखता है!
कितना मजा, कितनी सजा?
‘मिर्जापुर’ का एक ट्रेडमार्क रहा है, खून-खच्चर से दर्शकों को शॉक करना. मगर पहले सीजन से तीसरे तक आते-आते इसका इस्तेमाल अब ज्यादा समझदारी से होने लगा है. ‘मिर्जापुर 3’ की खासियत इसकी इंटेलिजेंस है. पिछले दो सीजन के मुकाबले, अब किरदार दिमाग ज्यादा लगा रहे हैं, यहां तक कि गुड्डू भी. वायलेंस गुड्डू की यूएसपी है, ये बात शो के राइटर्स ने भी समझी है और इसे ध्यान से इस्तेमाल किया है. लेकिन गुड्डू को हमेशा भभकते देखने की इच्छा रखने वालों को ये बात थोड़ी कम पसंद आएगी. हालांकि, शो के अंत में जेल के अंदर डिजाइन एक फाइट सीक्वेंस में इसकी पूरी भरपाई है.
‘मिर्जापुर 3’ में कॉमिक रिलीफ पहले दो सीजन के मुकाबले काफी कम है. जहां है भी, वो कहानी में थोड़ी जबरन घुसाई लगती है और मूड को डिस्टर्ब ही करती है. जैसे एक अंडरकवर कॉप किरदार और प्रदेश के गृहमंत्री की जबरन गलत शब्द पढ़ने की नौटंकी.
मिर्जापुर में शुरू से ही कई कहानियां आपस में क्रॉस होती हैं. इस बार इसे बहुत बेहतर तो डील किया गया है, मगर शत्रुघ्न त्यागी का सब-प्लॉट और एक्सप्लोर किया जाना चाहिए था. सीजन 2 में भी त्यागियों का मामला अधूरा सा रह गया था, इस बार भी वो मेन मुद्दे में बहुत ज्यादा योगदान नहीं दे पाए.
दूसरे सीजन में आया एक नया किरदार, जनता का फेवरेट बन गया था. इस बार उसे और ज्यादा अच्छे से दिखाए जाने की उम्मीद थी, मगर शो ने यहां निराश किया. राइटिंग में किरदारों को मार देना अक्सर ये दिखाता है कि राइटर उससे बेनिफिट नहीं निकाल पा रहे और उसे ख्वामख्वाह की जटिलता मानकर निपटा दिया गया है. लेकिन इस किरदार से काफी कुछ काम लिया जा सकता था.
इस बार शो का असली मजा बांधा है शरद शुक्ला और माधुरी ने. इन दो किरदारों की राइटिंग बहुत ठोस है. दो यंग, अच्छे पढ़े लिखे और एक नए यूनिवर्स में जीने का ख्वाब देखते लोगों का, विरासत में मिले कीचड़ में उतरना. और सिर्फ बैलेंस बनाना ही नहीं, उसमें पांव जमाना, एक देखने लायक डेवलपमेंट है.
‘मिर्जापुर 3’ में सबसे ज्यादा मजा आता है महिला किरदारों को देखते हुए. बीना, माधुरी, गोलू, रधिया और जरीना अपनी-अपनी रौ में दमदार लगते हैं. डायरेक्टर्स गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर के साथ-साथ राइटर्स की टीम को इसके लिए क्रेडिट दिया जाना चाहिए. कलम में बारूद भरकर लिखे पुरुष किरदारों के बीच, ऐसे असरदार महिला किरदार बड़े भौकाली लगते हैं.
तीसरे सीजन में आकर ‘मिर्जापुर’ किरदारों के ट्रीटमेंट, कंफ्लिक्ट और कैमरे की नजर से डिटेल्स दिखाने में भी बेहतर हुआ है. डायलॉग हमेशा की तरह तैशबाजी से भरे हैं और इमोशंस वाले सीन्स में आपको इमोशंस महसूस होते हैं. शो ने अपना एक और फीचर बरकरार रखा है, किसी भी परिस्थिति में आप किरदारों से जैसे बर्ताव की आशा करते हैं, वो वैसा बिल्कुल नहीं करते. उसका ठीक उल्टा भी नहीं करते, बल्कि कुछ अलग ही कर देते हैं.
एक्टिंग का जबरदस्त कमाल
मिर्जापुर से लाख शिकायतें हों, मगर एक्टर्स के काम के मामले में इस शो का लेवल बहुत ऊपर है. अली फजल, पंकज त्रिपाठी, रसिका दुग्गल और श्वेता त्रिपाठी तो पहले ही सीजन से लगातार फॉर्म में हैं. ये अपने किरदारों में आधा रत्ती भी गलती नहीं करते. लेकिन इस बार अंजुम शर्मा और ईशा तलवार ने अपने किरदारों को, परफॉरमेंस से कमाल का वजन दिया है. दोनों एक्टर्स की बॉडी लैंग्वेज, आवाज का उतार-चढ़ाव और आंखें कमाल का असर छोड़ती हैं. विजय वर्मा जैसे ही माहौल बनाते हैं, राइटिंग उनका साथ छोड़ देती है. जिस एक्टर ने शायर का किरदार किया है उसका काम भी दमदार है. और हमेशा की तरह सपोर्टिंग कास्ट भी ठोस असर करती है.
एंटरटेनमेंट की सुविधा में एक दुविधा
मिर्जापुर में शुरू से ही एक मोरल स्केल यानी नैतिकता के कांटे की कमी रही है. जो अब तीसरे सीजन में और ज्यादा महसूस होती है. 6 साल और तीन सीजन सर्वाइव कर चुके इस शो में अभी तक किसी एक किरदार से आप किसी तरह की नैतिकता की कोई उम्मीद नहीं कर सकते.
ये ठीक है कि एक पूरे डार्क, कुरूप संसार को स्क्रीन पर रचने के लिए ऐसा जरूरी है. लेकिन एंटरटेनमेंट के जाल में एक तार इस बात का भी होना जरूरी है कि दर्शक किरदारों को सपोर्ट करने का मन बनाए. जब ये नहीं होता तो उसी कोने से दर्शक का अटेंशन निकल भागता है. किसी को उसका एम्बिशन पूरा करते देखना चाहे.
शॉक वैल्यू के लिए किरदारों का सांचा तोड़ देना एक अपवाद हो तो दिलचस्प लगता है, सरप्राइज करता है. लेकिन ऐसा करते चले जाना भी दोहराव ही है, जो बोर भी कर सकता है. ‘मिर्जापुर 3’ के अंत में आते-आते शो के दो सबसे प्रमुख किरदार जो करते हैं, उसकी उनसे उम्मीद ही नहीं थी. जहां एक से उसके शाही बर्ताव और वादा निभाने की उम्मीद थी, वहीं दूसरे से परिवार के लिए पिघलने की एक मिडल क्लास आकांक्षा भी थी.
हालांकि, कुल मुलाकर ‘मिर्जापुर 3’ शॉक-सरप्राइज-सनक से ध्यान तो जरूर बांधे रखता है. एक्टर्स की शानदार परफॉरमेंस और किरदारों का तैश, एड्रेनलिन तो बढ़ाता ही है. डायलॉगबाजी और क्लाइमेक्स में कालीन भैया का खेल सोने पे सुहागा है.
Kareena Kapoor is working with Raazi director Meghna Gulzar for her next film. The project,…
2024-11-09 15:00:03 WEST LAFAYETTE -- Daniel Jacobsen's second game in Purdue basketball's starting lineup lasted…
2024-11-09 14:50:03 Rashida Jones is remembering her late father, famed music producer Quincy Jones, in…
2024-11-09 14:40:03 A silent German expressionist film about vampires accompanied by Radiohead’s music — what…
Let's face it - life can be downright stressful! With everything moving at breakneck speed,…
Apple’s redesigned Mac Mini M4 has ditched the previous M2 machine’s SSD that was soldered…